बिहार की राजनीति में पुतुल सिंह एक नया नाम हैं। पुतुल सिंह का चेहरा बिहार की जनता ने इससे पहले कभी नहीं देखा था। बता दें कि पुतुल बांका संसदीय सीट से चुनावी मैदान में हैं। इनके चुनावी मैदान में आने का एकमात्र कारण है, समाजवादी नेता एवं बांका के सांसद दिग्विजय सिंह का असामयिक निधन। यानी महिलाओं या बेटियों को राजनीति में आने के लिए कुछ खास परिस्थितियों का इंतजार करना पड़ता है। जदयू के विक्रमगंज के सांसद अजीत सिंह के एक दुर्घटना में मारे जाने के बाद उनकी पत्नी मीणा सिंह ने उनकी राजनीतिक विरासत को संभाला। मीणा सिंह आज लोकसभा सदस्य हैं। लेकिन इन्हें भी राजनीति में आने के लिए जीवन की एक दुखदायी घड़ी का इंतजार करना पड़ा।
दानापुर से निवर्तमान विधायक आशा देवी, दीघा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहीं पूनम देवी, धमदाहा से लेसी सिंह जैसी कई महिलाएं हैं, जिन्हें पति के असामयिक निधन या हत्या के बाद राजनीति में आना पड़ा। दूसरी तरफ कुछ महिलाएं अपने पति के जेल जाने या कानूनी वजहों से चुनाव नहीं लड़ पाने की वजहों से चुनावी मैदान में खड़ी हैं। यानी बाहुबलियों के द्वारा घूंघट की ओट से वोट की नयी राजनीति की शुरुआत में इन महिलाओं को मोहरा बनाया गया है। गौरतलब है कि यहां भी महिलाएं राजनीति में तब आई हैं, जब उनकी जिंदगी एक विशेष परिस्थिति से गुजर रही है। सरकार एक तरफ आधी आबादी को अधिकार प्रदान कर सशक्त करने की बात करती है, दूसरी तरफ सरकार में ही बैठे राजनेता यह नहीं चाहते कि लोकतंत्र में बराबर की हिस्सेदारी में उनकी बेटी की भागीदारी भी हो। यह राजनीति भी एक गजब पहेली है, जिसमें जनता तो उलझती ही है, नेता अपने परिवार को भी उलझाने से बाज नहीं आते।
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