Monday, December 13, 2010

जाएं तो जाएं कहां?

आमदनी इतनी कम कि किराये के मकान में रहना संभव नहीं। इसलिए मजबूरी में रहना भी जरूरी है। मतलब साफ, जान जाए तो जाए, पर हम कहां जाएं?। यह पटना शहर के कुछ ऐसे लोगों की व्यथा है, जिनके माथे पर मौत कभी भी टपक सकती है। जी हां, पटना के अंदर सरकार द्वारा बनाये गये भवनों एवं क्वार्टरों की एक ऐसी लंबी फेहरिस्त है, जहां सरकारी सेवकों तथा साथ ही अवैध ढंग से रहनेवाले परिवारों की जिंदगी पर पल-पल मौत का पहरा रहता है।
 दिल्ली के लक्ष्मीनगर में हुए हादसे से पहले ही पटना में जर्जर हो चुके मकान के गिरने से कुछ लोग जहां काल के गाल में समा चुके हैं, वहीं कई घायल आज जिंदगी को पटरी पर लाने की जद्दोजहद में जुटे हैं। गौरतलब है कि जून माह में बहादुरपुर हाउसिंग कॉलोनी स्थित एक भवन के गिरने से एक महिला की मौत हो गयी थी। वहीं कुछ लोग घायल हो गये थे। इसी तरह पटना विश्वविद्यालय के सैदपुर कैंपस में एक स्टॉफ क्वार्टर के भरभराकर गिर जाने से सात लोग गंभीर रूप से घायल हो गये। संयोगवश किसी की जान नहीं गयी थी। उल्लेखनीय है कि भूकंप के पहले जोन में पटना के होने के बावजूद इन मकानों का किसी तरह खड़ा रहना महज एक संयोग है। 
हादसा कभी भी हो सकता है। पर, सरकार को इससे दरकार नहीं। शायद हमेशा की तरह सरकार हादसे का इंतजार कर रही है। बहरहाल आवास बोर्ड, भवन निर्माण, नगर निगम के द्वारा भूतनाथ रोड, बहादुरपुर, सैदपुर बैचलर क्वार्टर, बहादुरपुर हाउसिंग कॉलोनी, यारपुर, संदलपुर, पटना सिटी सहित कई जगहों पर जर्जर भवनों का ढांचा खड़ा है, जिसमें लोग वैध और अवैध दोनों तरीके से रह रहे हैं।
    कुछ का रहना जहां मजबूरी है। वहीं कुछ कब्जा जमाकर वहां या तो रह रहे हैं या तो फिर उससे किराया वसूल रहे हैं। जहां तक विश्वविद्यालय कैंपस की बात है, तो वहां विश्वविद्यालय शिक्षकों के लिए बने क्वार्टर में रह रहे शिक्षकों की जान भी आफत में है। इनके द्वारा बार-बार गुहार लगाने के बाद भी क्वार्टरों में पर्याप्त सुधार नहीं किये जा रहे हैं। मरम्मत के नाम पर यदा-कदा खानापूर्ति की जाती रही है।  सवाल यह है कि प्रत्येक भवन की एक उम्र होती है। इसके बाद या तो उसे गिरा दिया जाता है या फिर उसे सील कर दिया जाता है, ताकि वहां कोई रह न सके। लेकिन यहां ऐसा नहीं है। यहां आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी प्रशासन जान-बूझकर मरम्मती का खेल खेलती है और उससे पैसा बनाती है। जर्जर क्वार्टर एक ऐसी दुधारु गाय है, जो भ्रष्ट अधिकारियों के लिए आमदनी का जरिया बन गया है। सरकार आखिर ऐसा क्यों चाहती है? सरकारी कर्मचारियों या आम जनता की जान से खेलने पर उतारु सरकार लाचार है या फिर लालची। आने वाले समय में इसका जबाव देना होगा। क्योंकि आम जनता की जान-माल की सुरक्षा की जिम्मेवारी सरकार पर ही है।

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