Monday, December 13, 2010

सांसद चले विधायक बनने

कौशलेन्द्र
पटना। सियासत के सितमगारों के अंदर सत्ता की बैठी भूख ने उनकी राजनीति का रुख बदल दिया है। वर्तमान राजनीति का नशा ऐसा सर चढ़कर बोल रहा है कि कल तक संसद की सीढ़ियां लांघने वाले कुछ नेता अब विधानसभा की देहरी पार करने के लिए जनता की चैखट चूम रहे हैं। भला इस उपभोक्तावादी संस्कृति में प्रमोशन के बजाय कोई डिमोशन चाहता है। लेकिन, यह राजनीतिक दुनिया की तल्ख सच्चाई है कि अब सांसद विधायक बनने के रास्ते पर हैं।
राजनीतिक दल भी पूर्व सांसदों को विधायक बनाने में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी दिखा रहे हैं। पंद्रहवीं बिहार विधानसभा चुनाव के सत्ता संग्राम में करीब दर्जन भर पूर्व सांसदों के साथ कई केंद्रीय मंत्रियों ने भी अपनी किस्मत की नाव चुनाव के मझधार में उतार दिया है। सबसे पहले बात एक ऐसे पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री की जिनका दल बदलना रोजगार है।
जी हां, आप ठीक समझें, हम बात कर रहे हैं नागमणि की। महाशय 2001 में लोकसभा का चुनाव लड़े थे, उस समय जदयू का दामन छोड़ लालू यादव के साथ हो लिए। इस बार मन नहीं भरा तो मैडम सोनिया की शरण में आ गिरे। कुछ दिनों तक किसान महापंचायत आयोजित करने, करवाने में लगे रहें और अब विधायक बनने के लिए कांग्रेस के टिकट पर मैरवा से चुनाव लड़ रहे हैं। नागमणि अकेले इस रास्ते पर नहीं हैं। राजद सुप्रीमो लालू के दोनों साले जो कल तक लालू के साथ साये की तरह रहा करते थे, वे भी आज इसी रास्ते पर आ खड़े हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी में तरजीह नहीं मिलने के कारण  जहां साधु यादव ने पार्टी छोड़ी, वहीं सुभाष ने कुछ दिन राज्यसभा की सांसदी जाने के साथ राजद से त्याग-पत्र दे दिया। साधु 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हैं। सूत्रों की मानें तो साधु स्वयं चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे थे, बल्कि अपने पचास से ज्यादा समर्थकों को लड़ाकर एवं जिताकर सत्ता की सौदेबाजी को मजबूती देना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने समर्थकों की सूची खारिज कर साधु को ही गोपालगंज से मैदान में उतार दिया। वहीं जेल में बंद कोसी के दो महाबलियों आनंद मोहन एवं पप्पू यादव  की पत्नी क्रमशः लवली आनंद एवं रंजीता रंजन भी पूर्व में सांसद की हैसियत में रह चुकी हैं। लवली आनंद आलमनगर से, तो रंजीता रंजन बिहारीगंज से चुनावी समर में ताल ठोक रही हैं। दोनों कांग्रेस प्रत्याशी हैं। हालांकि कोसी के दोनों तथाकथित बाहुबली अपने समर्थकों के लिए भारी मात्रा में टिकट की चाह रखती थीं। आनंद मोहन को जहां सफलता कम मिली, वहीं पप्पू यादव अपने बारह समर्थकों को टिकट दिलाने में सफल रहे। इसी तरह कभी भागलपुर से भाकपा के सांसद रहे सुबोध राय सुल्तानगंज से, सासाराम से सांसद रहे छेदी पासवान मोहनियां से, मधेपुरा से सांसद रहे रमेंद्र कुमार रवि मधेपुरा से, बेतिया से सांसद रहे फैजयुल आजम सिकटा से, विधायक बनने पर आमादा हैं। बांका के सांसद रहे गिरधारी यादव बेलहर से, शिवहर के सांसद रहे अनवारुल हक, बाढ़ के पूर्व सांसद विजयकृष्ण बाढ़ से, रोसड़ा के पूर्व सांसद रामसेवक हजारी कल्याणपुर से, पूर्व सांसद रामचंद्र पासवान कुशेश्वर स्थान, औरंगाबाद से, सांसद रहे विरेंद्र सिंह नवीनगर से किस्मत आजमा रहे हैं। सांसद से विधायक बनना स्वयं भी इन्हें अच्छा नहीं लग रहा होगा, लेकिन बेरोजगार रहने से तो अच्छा है कि विधायक ही बन जायें, नहीं तो फिर कार्यकर्ता बने रहना तो उनका जन्म सिद्ध अधिकार है।

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