Monday, December 13, 2010

राजनीति में दोहरी नीति बेटी नहीं, बेटों से प्रीति

कौशलेन्द्र प्रियदर्शी
लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए अब्राहम लिंकन ने कहा था, ‘‘जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता का शासन, ही लोकतंत्र है।’’ जो व्यक्ति आम जनता के हक की लड़ाई लड़ेगा वही समाज का अगुआ होगा। लेकिन धीरे-धीरे लोकतंत्र का चेहरा बदला और बड़े ही कायदे से जनता की जमीन पर सियासी घरानों ने अपनी इमारत खड़ी कर दी। यानी जो काम पहले रियासत में होता था, वो आज की सियासत में हो रहा है। अब नेता का बेटा ही नेता होगा और कार्यकर्ता सिर्फ झंडा ढोएगा। इस बार का यह चुनावी संदेश है कार्यकर्ताओं को। नेताओं की तरफ से। लेकिन सवाल है कि नेता का बेटा ही नेता क्यों होगा? बेटियां क्यों नहीं?
 महिला सशक्तिकरण की वकालत करते फिरने वाले राजनेताओं के चेहरे से राजनीति में भी लिंग भेद करने की परंपरा काफी पुरानी रही है। हाल के दिनों में भी कई राजनेताओं ने अपने राजनीति उत्तराधिकारी के लिए जब-जब दावेदारी पेश की है, तो उन्हें बेटे का ही चेहरा दिखा है। मतलब साफ है कि राजनीतिक वंशवाद की प्रथा को आगे बढ़ाने के लिए बेटा का ही कंधा चाहिए। आखिरकार फर्क यहां भी दिख गया। जनता को ठगने
वाले लोग परिवार को भी ठगने से बाज नहीं आ रहे। यह जम्हूरियत के चेहरे को और बदशक्ल करता है। आजादी के बाद भारतीय लोकतंात्रिक व्यवस्था ने  63 बसंत देखे हैं। लेकिन इस व्यवस्था में बेटियों की हिस्सेदारी न के बराबर है। बिहार की राजनीति में तकरीबन बीस वर्षों से लालू यादव का दबदबा रहा है। हां, सामाजिक न्याय की बात करने वाले लालू यादव के सामने राजनीतिक वंशवृद्धि की बात याद आई, तो सात बेटियों और दो बेटों के पिता लालू को अपने बेटियों से काफी कम उम्र का बेटा तेजस्वी यादव ही दिखा। क्रिकेटर तेजस्वी अब राजनीति के पिच पर अपने पापा के स्टाइल में हाथ आजमा रहा है। हालांकि  अभी चुनाव लड़ने में काफी देर है। गौरतलब है कि लालू यादव की कई बेटियां तेजस्वी से उम्र में बड़ी हैं। ऐसी बात नहीं कि इनकी बेटियों की रुचि राजनीति में न के बराबर होगी। इससे साबित तो यही होता है कि राजद सुप्रीमो बेटियों को राजनीति के मैदान में तरजीह नहीं देना चाहते। इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह, जगन्नाथ मिश्र, कर्पूरी ठाकुर, दारोगा प्रसाद राय, रामसुंदर दास, पूर्व केंद्रीय मंत्री ललित ना. मिश्र, रामलखन सिंह यादव, अनुग्रह नारायण सिंह, सत्येंद्र नारायण सिंह, रामजयपाल सिंह यादव एवं वर्तमान के कई सांसद डॉ. सीपी ठाकुर, जगदानंद, शिवानंद तिवारी, जगदीश शर्मा जैसे कई राजनेताओं को यह नहीं लगता कि राजनीति के परिवारवाद वाले धंधे में बेटियां भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। भारतीय राजनीति में सबसे ऊंचा राजनीतिक कद रखनेवाले गांधी परिवार ने भी राजनीति करने का दारोमदार अपने बेटे के ही कंधे पर रख छोड़ा।

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