जी हां! कहने को सेवक जो, आलीशान होटलों से मालिकों के बीच जाने का एलान कर चुके हैं अब पहुंचने भी लगे हैं। कैसे जरा जानिए। हरेक पार्टी के मुखिया फटेहाल मालिकों के बीच जाने के लिए जहां हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल कर रहे हैं वहीं पार्टी प्रत्याशी महंगी गाड़ियों का सफर तय कर अपने लक्ष्य को भेदने में लगे हैं। बता दें कि हेलिकॉप्टर की सवारी काफी महंगी है जहां एक इंजन वाले हेलिकॉप्टर के प्रतिदिन का उड़ान का किराया 70 से 75 हजार है वहीं दो इंजन के हेलिकॉप्टर का किराया डेढ़ से पौने दो लाख के बीच है। पायलट के खर्च तथा अन्य खर्च भी उड़ने वाले नेता जी को ही उठाना पड़ता है। गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में करीब 35 हेलिकॉप्टर और विमानों ने करीब दो हजार से भी अधिक की उड़ान भरी थी जिस पर करोड़ों रुपए खर्च हुए। हद हो गई न! जहां 45 प्रतिशत घरों में एक शाम का चूल्हा नहीं जलता वहां के तथाकथित लोकतंत्र के रहनुमाओं के द्वारा अरबों रुपये आसमानी उड़ान पर खर्च कर दिए जाते हैं। जहां की आबादी का वार्षिक आय सिर्फ 5466 रुपया है, जहां भूमिहीन किसानों की संख्या 48.18 प्रतिशत है, जहां के लाखों लोग प्रत्येक वर्ष मजदूरी के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर जाते हैं वहां का राजनेता जनता के बीच जाने के लिए हेलिकॉप्टर से लेकर पजेरो, फॉरचुनर, स्कार्पियो, इंडिवर जैसे महंगी गाड़ियों का इस्तेमाल करता हो तो सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद राज्य के पहरेदारी के नाम पर कितनी ईमानदारी बरती गई है। राज्य के तमाम चार चक्का वाली महंगी गाड़ियों के एजेंसियों के पास गाड़ी के लिए लंबी लाइन लगी है। इनके मैनेजरों की मानें तो महीना में करीब 100 से 150 के बीच गाड़ियों की मांग बढ़ गई है। आखिर यह राज्य के विकास का द्योतक है या राजनेताओं का। तय जनता को करना है।
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