Monday, December 13, 2010

ये हैं लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर

कौशलेन्द्र प्रियदर्शी
लोकतंत्र की सफलता के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारण शिक्षा को माना जाता रहा है। यानी जिस देश या राज्य में शिक्षा का प्रसार जितना ज्यादा होगा, वहां लोकतंत्र उतना ही अधिक सफल होगा। लेकिन जहां के नेता के लिए पढ़ाई ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ के समान हो, तो भला उस राज्य का भविष्य क्या होगा? उल्लेखनीय है कि विधानसभा किसी भी राज्य की आत्मा है। यहां की जनता के द्वारा चुनकर आये जनप्रतिनिधियों के द्वारा राज्य के विकास एवं आम जनता को लाभ पहुंचाने के ख्याल से कानून बनाये जाते हैं। विकास योजनाओं का खाका पहले विधानसभा के पटल पर ही रखा जाता है। तत्पश्चात जनप्रतिनिधियों द्वारा मंजूरी दिए जाने के उपरांत उसे जमीनी तौर पर अमली जामा पहनाया जाता है। लेकिन, अहम सवाल है कि आजकल के जनप्रतिनिधियों के पास शिक्षा के नाम पर सिर्फ साक्षर होने का विशेषण भर ही है। जिन्हें पूरी तरह फाइल तक नहीं पढ़ने आता हो, वे विकास का ब्लू प्रिंट  का खाका क्या तैयार कर पायेंगे? गौरतलब है कि आज से दो दशक पहले बंदूक के सहारे विधानसभा में पहुंचने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई। इसी बढ़ोत्तरी   ने निरक्षरों को भी विधानसभा के देहरी के अंदर प्रदेश करने का मौका दिया। कारण कि अधिकांश अपराधी चरित्र के विधायक या तो निरक्षर थे या फिर किसी तरह अपना नाम भर लिखना जानते थे। तभी बिहार पहली बार महिला मुख्यमंत्री से दो चार हुआ, जो सिर्फ आठवीं पास थीं। बाद के दिनों में अपराधियों और किसी-किसी तरह से साक्षर लोगों को अधिकृत पार्टियों के द्वारा टिकट देना एक प्रचलन बन गया। इसी प्रचलन का नजीर बना है पंद्रहवीं बिहार विधानसभा का चुनाव। नेशनल इलेक्शन वॉच के बिहार चैप्टर की रिपोर्ट के अनुसार, पांचवें चरण तक के चुनाव में 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 217 सीटों पर प्रमुख दलों के द्वारा करीब दो दर्जन निरक्षर लोगों को चुनावी मैदान में उतारा गया है। निर्दलीय प्रत्याशियों को जोड़ देने पर यह संख्या सैकड़ा से पार कर जाती है। प्रत्याशियों द्वारा चुनाव आयोग को दिये गये शपथ पत्र में इनलोगों ने शिक्षित होने के बारे में जो लिखा है, वह प्रमाणित करता है कि ये लोग ‘लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर’ हैंै। वहीं प्रमुख दलों के 22 प्रत्याशियों ने तो शिक्षा के बारे में कोई जानकारी ही नहीं दी है। बता दें कि पांचवें चरण तक के चुनाव में कांग्रेस ने 05, बीजेपी ने 04, जदयू ने 06, राजद ने 05, एलजेपी ने 01, बीएसपी ने 11 ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिये, जो किसी तरह अक्षर पढ़ पाते हैं। इसी तरह कांग्रेस, भाजपा, राजद, जदयू और बसपा ने कुल मिलाकर 08 पांचवीं पास, 44 आठवीं पास, 107 दसवीं पास और 158 बारहवीं पास लोगों को टिकट दिये हैं। जहानाबाद के जदयू प्रत्याशी अभिराम शर्मा महज दशवीं कक्षा पास हैं। जदयू ने तो 2 निरक्षरों को पार्टी का उम्मीदवार बनाया एवं 6 साक्षरों व 9 आठवीं पास, 24 दसवीं पास, 20 बारहवीं पास लोगों को टिकट दिया है। इसी तरह राजद ने भी दो निरक्षर, 05 साक्षर, एक पांचवीं पास, पांच आठवीं पास, 25 दसवीं पास और 21 बारहवीं पास लोगों को चुनाव लड़ने का पास थमा दिया है। इन सबों के बीच कुछ ऐसे प्रत्याशी हैं, जिन्होंने अपना शैक्षणिक विवरण देना आवश्यक नहीं समझा है। जदयू के पूर्णिमा यादव, वैद्यनाथ सहनी, सुबोध राय, तो राजद के मजहर आलम, बृजकिशोर सिंह, वहीं बीजेपी के विनय सिंह, कुमार शैलेंद्र सहित लोगों ने शिक्षा को अहमियत नहीं दी है। वहीं कई लोग सिर्फ साक्षर हैं। नेशनल इलेक्शन वॉच के बिहार चैप्टर के संयोजक अंजेश कुमार कहते हैं कि पार्टियों को प्रत्याशियों के शैक्षणिक योग्यता से  मतलब नहीं। उन्हें तो धन, बल और बाहुबल युक्त ऐसे प्रत्याशी चाहिए, जो चुनाव जीत सके।

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