Monday, December 13, 2010

इतिहास बन गई चैदहवीं विधानसभा

कौशलेन्द्र प्रियदर्शी
पटना। किसी भी राज्य की आत्मा होती है विधानसभा। जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि इसी आत्मा के भीतर बैठकर जनकल्याण के लिए कानून बनाते हैं। बिहार विधानसभा के चैदह बसंत पूरे हो गये। चैदहवीं विधानसभा इतिहास के पन्नों में इजाफा कर गया। इस इतिहास में कई बार बिहार की जनता के लिए जहां नई ईबादत लिखी गयी, वहीं कई ऐसे मौके आये जब कुर्सियां राजनेताओं के ऊपर  बैठती नजर आयी, वहीं चप्पल आसन की तरफ उछलता नजर आया। कई माननीय  कुर्सी रहने के बावजूद टेबुल पर बैठकर अपनी बातों को कहते नजर आये, तो कइयों ने संयम के साथ सभा की गरिमा को कायम रखने के प्रयास किये। लेकिन, विडंबना देखिए कि पहले बदनामी की सुर्खियां बटोर चुके बिहार का चेहरा जब राष्ट्रीय स्तर पर तेजी से बदल रहा था, तब इसी चैदहवीं विधानसभा के आखिरी सत्र में कुछ सदस्यों ने सदन में ही रात बिताकर बनती बात को बिगाड़ने का भरपूर प्रयास किया।
    इतिहास की परिभाषा है कि ‘इतिहास भूत और वर्तमान के बीच अर्थपूर्ण संवाद है।’ चैदहवीं विधानसभा में भी कुछ ऐसे कानून बनाये गये, जो संभवतः वर्षों तक सिर्फ देश के लिए ही नहीं, बल्कि विश्व भर के लिए एक नजीर बना रहेगा। विश्व में पहली बार गणतंत्र की स्थापना करने वाले बिहार ने फिर एक बार पंचायतों में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण देकर ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ को चरितार्थ किया। शायद इस श्लोक के अर्थपूर्ण प्रभाव पर अमल करने की प्रक्रिया बना दिया। उल्लेखनीय है कि चैदहवीं विधानसभा का पहला सत्र 28 नवंबर, 2005 को शुरू हुआ, जबकि पंद्रहवीं व आखिरी सत्र 23 जुलाई, 10 को। इस दौरान सदन की 175 बैठकें आयोजित की गईं और 122 कानूनों ने जन्म लिए। इसमें कुछ कानून जनकल्याण के लिए, तो कुछ स्वकल्याण के लिए बनाये गये। इन्हीं कानूनों के तहत माननीय सदस्यों ने अपना वेतन वृद्धि भी किया तथा साथ ही तेरहवीं विधानसभा के सदस्यों के लिए निर्वाचित विधायकों को चुनाव आयोग के अधिसूचना जारी होने की तिथि से ही सदस्यों का दर्जा दिलवाकर मित्रों के लिए नेक काम किया।
    28 मार्च, 2006 को दूसरे सत्र में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के द्वारा विधानमंडल के संयुक्त संबोधन ने भी इतिहास रचने का काम किया। भ्रष्टाचारियों की संपत्ति जब्त करने के कानून ने पूरे देश में बिहार की बनती छवि व ईमानदार चेहरा होने का संदेश दिया। वहीं 1993 के कानून में संशोधन करते हुए पंचायत में अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए एक प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर न्याय के साथ विकास के जुमले को चरितार्थ किया। पंचायत में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण तथा बिहार भूमि सुधार संशोधन विधेयक, 2009 को मंजूर करके भूमिहीनों के बीच बांटी जानेवाली जमीन का पचास प्रतिशत हिस्सा महिलाओं को देने की व्यवस्था करना भी सामाजिक न्याय के क्षेत्र में एक सशक्त हस्ताक्षर बना। विधानसभा के पांचवें सत्र में यूनिवर्सिटी आॅफ नालंदा विधेयक को मंजूरी प्रदान कर पुरातन शिक्षा के पुनर्जागरण का यह प्रयास आने वाले दिनों में बिहार के भविष्य को बेहतर करेगा। ये बातें सकारात्मक पक्ष की थीं, जहां बिहार हर बार एक नई लकीर खींचते नजर आया। दूसरी तरफ पांचवें सत्र से विपक्षी दलों का उग्र रुख अपनाना भी अपने आप में कम नहीं। आखिरी सत्र में 67 विधायकों के निलंबन ने सब कुछ किये कराये पर पानी फेर दिया।
    प्रश्नकाल के दौरान हंगामा करना एक आदत-सी बन गयी। वहीं विपक्ष के द्वारा वाकआउट करना एक नियम। परिणाम यह हुआ कि गंभीर मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पायी। बैठकों में विपक्षी नेताओं की कम उपस्थिति भी सालता रहेगा। सीएजी रिपोर्ट पर सीबीआई जांच कराने के आदेश को लेकर विधायिका और न्यायपालिका आमने-सामने हो गये। न्यायपालिका का उसकी औकात का अहसास भी कराया गया। विधानसभा अध्यक्ष को हटाने को लेकर भी विपक्षी सदस्यों ने खूब बवाल काटा। कुल मिलाकर इस चैदहवीं विधानसभा ने जहां देश को कई संदेश दिए, वहीं कुछ माननीय के कारनामों ने बदनामी के पंचनामा में बिहार का नाम दर्ज करा दिया। नीतीश कुमार एक बार फिर प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने में कामयाब हुए हैं। पंद्रहवीं विधानसभा का जन्म हो चुका है, लेकिन विडंबना देखिए, विपक्षी पार्टी के लायक किसी दल के पास संख्या ही नहीं है।

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