Monday, December 13, 2010

कभी साथ कभी घात

कौशलेन्द्र प्रियदर्शी
आज जरुरत है व्यक्तिवादी और क्षेत्रीय पार्टी के शासन को खत्म कर राष्ट्रीय पार्टी का शासन लाने की। बिहार में पार्टी की नहीं व्यक्ति का शासन चल रहा है’। उपरोक्त कथन है जनता दल यू के बागी सांसद ललन सिंह की, जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत क्षेत्रीय दल से करने के बाद करीब तीन दशक से अधिक क्षेत्रीय दलों के संरक्षण में बिताए हैं। अब जदयू में रहते हुए राष्ट्रीय पार्टी कांग्रे्रस के लिए पंद्रहवीं विधानसभा चुनाव में वोट मांग रहे हैं। राजद सांसद उमाशंकर सिंह भी पार्टी में रहते हुए अपने राजनीतिक लाभ के अनुसार उपयुक्त उम्मीदवारों के लिए वोट मांगेंगे। ललन सिंह और उमाशंकर सिंह में एक समानता यह है कि दल में रहते हुए दूसरे दल के उम्मीदवारों के लिए वोट मांग रहे हैं। यानी घर का भेदी लंका डाहे वाली कहावत चरितार्थ करने पर तुले हैं। राजनीतिज्ञों के यूं तो कई चेहरे होते हैं लेकिन पर्दे की पीछे। यहां तो एक ही राजनीतिज्ञ डबल रोल में नजर आ रहा है। कल तक जो साथ थे आज अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए ही घत करने को तैयार हैं। जानकारी के लिए बता दें कि डबल रोल वाले इस राजनीति की शुरुआत लोजपा के टिकट पर 2004 के लोकसभा चुनाव में सांसद बने रंजीता रंजन ने की थी। रंजीता रंजन ने नवंबर 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद के उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार कर इस डबल रोल वाले रास्ते की नींव रखी थी। श्रीमती रंजन फिलहाल कांग्रेस की शोभा बढ़ा रही है। अब उसी रास्ते पर ललन और उमाशंकर चल पड़े हैं। यह आज की राजनीति का विकृत चेहरा है जहां दल सिर्फ नीति के बजाय व्यक्ति के हिसाब से हांका जा रहा है और दिल अपने राजनीतिक स्वार्थ के हिसाब से। आज के तथाकथित राजनीतिज्ञों के लिए सिर्फ सत्ता ही सत्य है बाकी सबकुछ असत्य। आज चुनाव सिर्फ राज के लिए लड़े जा रहे हैं, नीति के लिए नहीं। तभी तो राजनीति के आंगन में साथ-साथ कदम रखने वाले दो दोस्त संघर्ष से लेकर सत्ता पाने तक साथ चले और फिर इसी सत्ता ने सिंहासन पर बैठे दोस्त से दूसरे दोस्त को विद्रोह करने पर विवश कर दिया। पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश लाओ, लालू हटाओ के अभियान के मुखिया बने ललन अब नीतीश राज हटाओ अभियान के अगुआ बने हुए हैं। जदयू में रहते हुए कांग्रेस के लिए वोट मांग राजनीति की एक और अनैतिक रेखा खींचने पर उतारु हैं। मतलब जहां से अभी पहचान है उसी घर को जलाने के लिए तैयारी कर ली है। लालटेन जलाकर जीते महाराजगंज सांसद उमाशंकर सिंह लालटेन को ही जलाने पर उतारु हैं। फिलहाल संसद में भी लालटेन का ही सहारा है। उस पर से बिडंबना देखिए कि अपने-अपने विद्रोही सांसदों को न तो पार्टी बाहर का रास्ता दिखा रही है और न ही बागी सांसद अपना घर त्याग रहे हैं। दोनों मतलबों के पीछे सिर्फ एक मकसद हैं। सत्ता में बने रहने का। मौकापरस्ती का इससे बेहतर नमूना शायद ही राजनीति में देखने को मिले। कुल मिलाकर ये दोनों राजनीति के कलयुगी विभीषण बने बैठे हैं। इसी तरह कलयुगी विभीषण हर दल में बैठे वक्त का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन देखना यह होगा कि इन कलयुगी विभीषणों के बीच रावण कौन है। टिकट के बंटवारे और चुनाव परिणाम के बाद बिहार की राजनीति में अभी और उथल-पुथल की संभावना है। सबसे आश्चर्य और गौर करने वाली बात तो यह है कि अपने क्षेत्र में मुखिया का चुनाव भी जीत पाने की क्षमता न रख पाने वाले दर्जनों लोग अपने-अपने सुप्रीमो पर आखें तरेर रहे हैं। साथ के बदले घात लगाने वाले ऐसे राजनेताओं को मतदाता क्या जवाब देंगे इसके फैसले की घड़ी नजदीक है। इतना तो तय है कि आनेवाले आम चुनाव में इसकी पहचान जनता अवश्य करेगी।फिलहाल मौकापरस्ती की जय हो।