Sunday, January 1, 2017

नया काल नया साल

(मैं काल हूँ,,मैं नया साल हूँ) 2017 ,,मेरे द्वारा रचित,,,,,पहली कविता आपलोगों को समर्पित है,,,,,
मैं काल हूँ।
मैं नया साल हूँ।
मैं ही समय हूँ।
मैं ही घण्टा और मिनट हूँ।
मैं ही सेकेण्ड और सेकेण्ड का अशांश हूँ।।
जिंदगी और मौत का सारांश हूँ।।
मैं काल हूँ ।
मैं नया साल हूँ।।
मैं ही वेद ।
मैं ही गीता ।
बाइबिल और कुरान हूँ।
सर्गों से भरा महाभारत ।
श्लोकों में बसा पुराण हूँ।।।
मैं काल हूँ ।
मैं नया साल हूँ।।।
मैं ही अयोध्य्या।
मैं ही वृंदावन।
मैं ही रामेश्वरम।
मैं ही हरिद्वार हूँ।
मैं ही काबा।
मैं ही अजमेर शरीफ ।
मैं ही मक्का का द्वार हूँ।।
मैं काल हूँ ।
मैं नया साल हूँ।।
मैं ही भारत ।
मैं ही अफगानिस्तान।
मैं ही सीरिया ।
मैं ही पाकिस्तान हूँ।
मैं हूँ खुशियों से भरा आंगन।
मातम में समाया श्मशान हूँ।।
मैं काल हूँ ।
मैं नया साल हूँ।।
मैं ही शांति का समंदर।
मैं ही सुनामी और बवंडर।
मैं हूँ फूलों का बाग़।
मैं हूँ धरती के नीचे की आग।
मैं ही ब्रम्हांड।
मैं ही भूचाल हूँ
मैं काल हूँ
मैं नया साल हूँ।।।
मैं ही खिलखिलाता बचपन।
जोश से भरा जवानी हूँ।
मैं ही दुःख दर्द भरा बुढापा।
यानी जिंदगी की कहानी हूँ।
मैं ही माता ।
मैं ही पिता।
मैं ही नाना व नानी हूँ।
मैं काल हूँ।
मैं नया साल हूँ।।।
हे इंसान ।
सुंदर बना लो अपना जहान।
अहंकार, लालच ,ईर्ष्या, द्वेष ।
में पड़कर मत बनो हैवान।
          वक्त की हथेली पर।
        फिसल रहा साल दर साल।
       चेत जाओ।
        नजदीक आ रहा।
       मौत का काल।।।।।।
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मैं काल हूँ ,,,,,,,,,,
मैं नया साल हूँ।।।।।।।।
                     कौशलेंद्र प्रियदर्शी
                    01 जनवरी 2017